पांच राज्यों में दांव पर कई पार्टियों की राजनीति, बंगाल में सबसे बड़ी भिड़ंत; रजनी के इनकार से राहत में द्रविड़ दल
अलग-अलग Sectors के लिए 2021 कैसा रहेगा? इस पर हम आपको जाने-माने विशेषज्ञों की राय से रू-ब-रू करा रहे हैं। अब तक आप देश की अर्थव्यवस्था, शिक्षा और नौकरियों पर आर्टिकल पढ़ चुके हैं। आइए आज Centre for the Study of Developing Societies (CSDS) के डायरेक्टर प्रोफेसर संजय कुमार से जानते हैं कि राजनीति के लिहाज से 2021 कैसा रहेगा...
2021 राजनीति के हिसाब से बेहद खास रहने वाला है। इसकी वजह भी है। इस साल पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा राजनीतिक दलों के दशकों से बने किले ढहाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। बंगाल में इसकी झलक देखने को मिलने भी लगी है। वहीं, क्षेत्रीय दल किसी भी कीमत पर मैदान में भाजपा से कमतर नजर नहीं आ रहे हैं।
मौजूदा हालात को देखते हुए यह भी साफ है कि इस साल कई पार्टियों की राजनीति दांव पर है। किसी को अपनी सरकार सत्ता विरोधी रुझान (anti-incumbency) से बचाना है तो किसी को सत्ता में वापसी की कोशिश करनी है। वहीं, किसी को अपनी पैठ बढ़ाना है।
इस साल जिन राज्यों में चुनाव होने हैं उनमें से दो पूर्वी और तीन दक्षिण के हैं। पूर्वी राज्यों में पश्चिम बंगाल और असम हैं। दक्षिण के राज्यों में केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी शामिल हैं। खास बात यह है कि इन सभी राज्यों में अलग-अलग पार्टियों की सरकारें हैं। किसी भी पार्टी की एक से ज्यादा राज्यों में सरकार नहीं है।
ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस (TMC) पश्चिम बंगाल में पिछले एक दशक से सत्ता में है। भाजपा असम और तमिलनाडु में सत्ता में रही है। तमिलनाडु 1967 से DMK और AIADMK के बीच झूल रहा है। वहां 2016 से AIADMK की सरकार है।
केरल में इस बार LDF की सरकार है। मगर हर बार यह बारी-बारी LDF और UDF के बीच झूलता रहा है। कभी पूरे दक्षिण में प्रभावशाली रही कांग्रेस फिलहाल केवल पुडुचेरी तक सीमित है, वह भी DMK के साथ गठबंधन में।
पश्चिम बंगाल : लोकसभा के रास्ते विधानसभा पहुंचने की तैयारी में भाजपा
पश्चिम बंगाल में राजनीतिक माहौल पूरी तरह गरम है। यह वह राज्य है जिसमें शुरुआत के कुछ दशक कांग्रेस का शासन रहा, इसके बाद लेफ्ट फ्रंट का और पिछले एक दशक से TMC की सरकार है।
ममता बनर्जी को इस बार भाजपा से कड़ी टक्कर मिलेगी। भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान ही राज्य में गहरी पैठ बना ली थी। इस चुनाव में भाजपा ने राज्य में 40% वोटों के साथ 18 सीटें जीती थीं, जबकि TMC ने 43% वोटों के साथ 22 सीटें।
विधानसभा सीटों के हिसाब से देखें तो कुल 294 सीटों में से भाजपा ने 121 पर और TMC ने 164 सीटों पर बढ़त हासिल की। खास बात यह है कि TMC ने 2016 विधानसभा चुनाव में 211 सीटें जीती थीं।
2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे और ताजा ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार भाजपा ने मतदाताओं के तमाम वर्गों में अपनी पैठ तेजी से बढ़ाई है। ऐसे में ममता बनर्जी का लगातार तीसरी बार चुनाव जीतना बेहद कठिन होगा। पश्चिम बंगाल में राजनीतिक उबाल है। ऐसे में वहां राजनीतिक बदलाव होने की पूरी संभावना नजर आ रही है।
तमिलनाडु : रजनीकांत के पीछे हटने से फिर AIAMDK बनाम DMK
तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की किसी बड़ी भूमिका की गुंजाइश नहीं दिख रही है। राज्य की राजनीति में दोनों द्रविड़ पार्टियों, DMK और AIADMK का ही दबदबा है।
कांग्रेस की भूमिका DMK की सहयोगी पार्टी के रूप में बनी रहने की उम्मीद है, मगर बिहार चुनाव में अपने प्रदर्शन के चलते कांग्रेस सीटों के बंटवारे में आक्रामक नहीं हो पाएगी।
दरअसल, 1967 के बाद से ही तमिलनाडु की राजनीति में कांग्रेस कभी प्रभावशाली नहीं रही। इसे देखते हुए 2021 के चुनाव में भी उसके लिए कुछ अलग होने की संभावना बेहद कम है। मोटे तौर पर कांग्रेस राज्य में DMK की लोकप्रियता के कंधे पर सवारी करेगी।
यदि DMK 2021 का विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब रही तो कांग्रेस गठबंधन सरकार में शामिल होने की पूरी कोशिश करेगी, लेकिन तमिलनाडु के चुनाव में क्या हो सकता है, इस बारे में बहुत अनिश्चितता बनी हुई है।
तमिलनाडु के चुनाव में भी गठबंधन कामयाबी की चाबी है और गठबंधनों को राज्य में आकार लेना बाकी है। रजनीकांत की इस घोषणा के बाद कि वे अब राजनीतिक दल नहीं बनाएंगे, राज्य में कम से कम एक अनिश्चितता तो खत्म हो गई है।
कमल हासन ने 2019 में तमिलनाडु की राजनीति में अपना भाग्य आजमाया मगर वे नाकाम रहे। हमें अभी यह देखना चाहिए कि भाजपा यहां चुनाव में कैसे उतरेगी। क्या वह अकेले चुनाव लड़ेगी या AIADMK के साथ मैदान में उतरेगी।
AIADMK पहले ही भाजपा को कड़ा संदेश भेज चुकी है। इसमें उसने भाजपा को अपनी अगुवाई में चुनाव लड़ने के लिए कहा है। साथ ही चुनाव जीतने की स्थिति में सरकार में भाजपा को शामिल करने के मुद्दे पर भी AIADMK तैयार नहीं है। ऐसे हालात को देखते हुए भाजपा के लिए फैसला लेना बेहद कठिन हो गया है।
केरल : दक्षिण के इसी राज्य से कांग्रेस को सबसे बड़ी उम्मीद
LDFऔर UDF के बीच झूलने के अपने इतिहास के चलते, माना जा सकता है कि इस बार UDF की बारी है। UDF का मुख्य घटक होने के चलते कांग्रेस के लिए केरल में सबसे अच्छी संभावनाएं हैं। हाल ही में हुए स्थानीय निकाय के चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन देखते हुए UDF की वापसी भी संभव है।
यह जानना बेहद जरूरी कि केरल में आमतौर पर चुनाव बेहद कम अंतर से जीते या हारे गए हैं, हालांकि 2016 के विधानसभा चुनाव इस मामले में एकदम स्पष्ट थे। LDF ने 42.6% वोटों के साथ 92 सीटें जीती थीं, जबकि UDF को 38.6% 'वोट मिले और 47 सीटें। अब LDF की 4% की बढ़त को देखते हुए राज्य में वापसी के लिए UDF को काफी कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।
राहुल गांधी की लोकसभा सीट जीतने से कांग्रेस के लिए कुछ अतिरिक्त वोट जुटाने में थोड़ी मदद मिल सकती है, लेकिन यह भी आसान नहीं होगा। राज्य में भाजपा की चाल को भी देखना जरूरी होगा। यह ध्यान देना होगा कि 2016 के चुनाव में भाजपा को 14.6% वोट मिले थे। इसके साथ भाजपा ने राज्य में अपना खाता भी खोला था।
इस साल के चुनाव में अगर भाजपा का प्रभाव नजर आया तो यह राज्य में पहले से स्थापित राजनीतिक समीकरणों को बिगाड़ सकता है। ऐसे में वामदलों के मुकाबले कांग्रेस को ज्यादा नुकसान हो सकता है।
पुडुचेरी : दक्षिण के अकेले राज्य को बचाने में कांग्रेस को जुटना होगा
पुडुचेरी में DMK के साथ सत्तारुढ़ कांग्रेस को दक्षिण भारत में अपना एकमात्र राज्य बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ सकती है। 2021 में जिन पांच राज्यों में चुनाव होना है, उनमें पुडुचेरी अकेला राज्य है जहां कांग्रेस सत्ता में है।
विधानसभा सीटों की काफी कम संख्या और कई ध्रुवों के चलते पुडुचेरी में भी चुनावी सफलता की चाबी गठबंधन के हाथ में होगी।
असम : भाजपा को बड़ी चुनौती नहीं, कांग्रेस की परेशानी बढ़ी
असम में सत्तारुढ़ भाजपा को प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस अब तक कोई बड़ी चुनौती नहीं दे सकी है। पार्टी अभी भी 2016 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने बहुत कमजोर प्रदर्शन के सदमे से उबर नहीं सकी है। 2001 से 2016 के बीच तीन बार असम के मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई के निधन ने कांग्रेस की मुसीबतों और बढ़ा दिया है।
पार्टियों के लिहाज से बेहतरीन परिदृश्य
भाजपा : असम और पश्चिम बंगाल में सत्ता मिले
भाजपा की राह असम में काफी आसान दिख रही है और पश्चिम बंगाल में भी वह मजबूत हो चुकी है। ऐसे में भाजपा के लिए सबसे अच्छा रिजल्ट कुल पांच में से दो राज्यों में जीत होगी।
स्कोर : 25
कांग्रेस : पुडुचेरी में सरकार बचे, केरल की चाबी मिले
कांग्रेस के लिए सबसे अच्छा परिदृश्य केरल में जीत और पुडुचेरी अपने पास बनाए रखने का होगा। ऐसे में कांग्रेस के लिए बेहतरीन रिजल्ट पांच में दो का होगा।
स्कोर : 25
क्षेत्रीय पार्टियां : तमिलनाडु-बंगाल में सरकारें बनी रहें
क्षेत्रीय पार्टियों यानी AIADMK, DMK, TMC के मामले में तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में अपनी-अपनी सरकारें बचाए रखना ही सबसे अच्छा होगा।
स्कोर : 2/5
वामदल : केरल की अकेली सरकार बची रहे
कुल मिलाकर देखें तो वामदलों के लिए सबसे अच्छी स्थिति होगी कि वे केरल में अपनी सरकार को बरकरार रखें यानी कुल पांच में एक जीत।
स्कोर : 1/5
ऐसे में यह कहा जा सकता है कि सभी राजनीतिक दलों के लिए 2021 काफी मायने रखेगा।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3ngrsYQ
No comments