कोरोना ने बहुत बदल दी दुनिया, लिपस्टिक नहीं अब आंखों के मेकअप का दौर, घर बने दफ्तर तो दवा टेलीमेडिसिन बनी
वुहान से निकले कोरोना वायरस ने कुछ महीनों में ही तकरीबन पूरी दुनिया में लोगों की जिंदगी बदल डाली है। बार-बार हाथ सैनिटाइज करना, घर से बाहर निकलते वक्त मास्क पहनना, हाथ ना मिलाना, दो गज की दूरी रखना, ये सारी बातें अब हमारी जिंदगी का जरूरी हिस्सा हैं।
एक वायरस ने चुपचाप कैसे हम पर असर डाला है, इसका अंदाज इस फैक्ट से लगाया जा सकता है कि मास्क के चलते दुनियाभर में लिपस्टिक की बिक्री में 28% की बड़ी गिरावट आ गई। महिलाएं अब आंखों और बालों के मेकअप पर ज्यादा ध्यान दे रही हैं।
इतना ही नहीं इस महामारी ने हमारे काम करने, पढ़ने, शॉपिंग करने जैसी कई जरूरी एक्टिविटीज का भी तरीका बदल दिया। एम्पलाइज के लिए वर्क फ्रॉम होम और बच्चों के लिए ई-लर्निंग एक परमानेंट ऑप्शन बन चुका है। ये सभी बदलाव 2021 के न्यू नॉर्मल हैं। तो आइए जानते हैं इन्हीं न्यू नॉर्मल को जो नए साल में हमारे लिए जरूरी होंगे...
- अब आई मेकअप और बालों को रंगने का दौर
वजह: कोरोना की वजह से महिलाएं मास्क का उपयोग करती हैं, इसलिए लिपस्टिक की बिक्री में कमी आई, लेकिन आई-मेकअप की सेल बढ़ गई।
कोरोना वाले न्यू नॉर्मल, यानी फेस मास्क मेकअप किट के सबसे जरूरी हिस्से लिपस्टिक की चमक घटा दी है। देश-दुनिया की सरकारों ने फेस मास्क अनिवार्य कर दिया है। ऐसे में लिपस्टिक का ट्रेंड लगभग खत्म हो रहा है। रिसर्च के मुताबिक लिपस्टिक की सेल 28% घटी तो आई-मेकअप, हेयर कलर और नेलपेंट की सेल में 200% तक उछाल आया। कॉस्मेटिक बनाने वाली कंपनियों के मुताबिक, कोरोना के बाद हालात सामान्य होने पर भी लोग मास्क पहनना जारी रखेंगे, जिसकी वजह से लिपस्टिक के यूज पर असर पड़ेगा।
- इस साल भी 25-30% लोग घर से करेंगे काम
वजह: लंबे समय तक वर्क फ्रॉम होम भले ही लोगों को उबाऊ लगने लगा, मगर ज्यादातर एम्पलाइज इसे स्थाई रूप से खत्म करना नहीं चाहते। इससे कंपनियों के खर्च में कमी आई और काम ज्यादा हुआ।
देश-दुनिया में कोरोना के दौर ने वर्क फ्रॉम होम के कल्चर को स्थापित कर दिया। देश में वैक्सीनेशन के बाद कोरोना भले ही काबू में आ जाए, मगर अब एम्पलाइज के लिए यह स्थाई विकल्प बन चुका है। ग्लोबल वर्कफोर्स एनालिटिक्स की प्रेसिडेंट केट लिस्टर का कहना है कि 2021 के आखिर तक 25% से 30% लोग सप्ताह में कई दिन घर से काम करेंगे।
ग्लोबल वर्कफोर्स एनालिटिक्स के ही सर्वे के अनुसार कोरोना से पहले ही दुनिया में 80% एम्पालाइज कुछ दिनों तक घर से ही काम करना चाहते थे। इसके लिए वे कुछ सैलेरी कट के लिए भी तैयार थे। अब कोरोना के बाद यह जिन्न बोतल से बाहर आ चुका है। इसके वापस बोतल में जाना मुश्किल है।
- कोरोना के दौर में तेजी से बढ़ रही ऑनलाइन शॉपिंग
वजह: सोशल डिस्टेंसिंग और कॉन्टैक्टलेस डिलीवरी की वजह से ऑनलाइन शॉपिंग लोगों के लिए पसंदीदा विकल्प बना।
कोरोना के वजह से बहुत से लोग बाजार या दुकानों पर जाने से डर रहे हैं। आसपास की दुकानों से भी लोग कॉन्टैक्टलेस डिलीवरी ले रहे हैं। एक सर्वे के मुताबिक 2019 में केवल 27% लोग ही ऑनलाइन शॉपिंग को प्राथमिकता देते थे, लेकिन 2020 में यह आंकड़ा बढ़ा। महामारी के दौरान इस सेक्टर में 51% की तेजी दर्ज की गई।
- तीन महीनों में 16 गुना तक बढ़ा सैनिटाइजेशन
वजह: WHO ने भी साबुन से कम से कम 20 सेकेंड तक हाथ धोने को कहा। कोरोना को फैलने से रोकने के लिए सरकार ने भी सैनिटाइजर इस्तेमाल करने की सलाह दी।
कोविड-19 से पहले देश में 10 करोड़ रुपए का सैनिटाइजर एक साल में बिकता था। अब देश का सैनिटाइजर बाजार 30 हजार करोड़ रुपए सालाना तक पहुंच सकता है। इसे उदाहरण से समझते हैं, औसतन एक व्यक्ति कम से कम 5 ML सैनिटाइजर रोजाना इस्तेमाल करता है। यानी 33 करोड़ भारतीय रोजाना 16 लाख 30 हजार लीटर सैनिटाइजर रोज इस्तेमाल कर रहे हैं।
सरकार ने सैनिटाइजर की कीमत 50 पैसे प्रति ML तय की है, यानी 33 करोड़ भारतीय एक दिन में करीब 83 करोड़ रुपए का सैनिटाइजर इस्तेमाल करते हैं, अब इसे 365 से गुणा करें तो करीब 30 हजार करोड़ रुपए होते हैं।
- इस साल 96 लाख स्टूडेंट्स करेंगे ऑनलाइन पढ़ाई
वजह: कोरोना के कारण 15 लाख से ज्यादा स्कूल बंद हुए। 32 करोड़ से ज्यादा स्टूडेंट्स की पढ़ाई पर असर पड़ा इसलिए उन्होंने ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफॉर्म चुना।
कोरोना के चलते स्कूल बंद हुए तो सरकार और UGC ने मिलकर कई ऑनलाइन कोर्सेस और प्लेटफॉर्म शुरू किए। स्वयंप्रभा, e-PG पाठशाला, यूट्यूब चैनल, शोधगंगा, e-शोध सिंधु, विद्वान, दीक्षा, e-पाठशाला जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म इसी कोशिश का नतीजा हैं। inc42 के मुताबिक, अगले पांच साल में देश में एजुकेशन टेक्नोलॉजी का मार्केट 3.7 गुना बढ़ सकता है।
- डॉक्टर के क्लीनिक पर खतरा, टेलीमेडिसिन का सहारा
वजह: डॉक्टर के क्लीनिक और केमिस्ट की दुकान पर कोरोना का खतरा सबसे ज्यादा है। ऐसे में बड़ी संख्या में लोगों ने ऑनलाइन डॉक्टरी सलाह ली।
कोरोना कै दौर में डॉक्टर का क्लीनिक और केमिस्ट की दुकान ऐसी जगह रहे, जहां संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा था, इसलिए लोगों ने प्रैक्टो जैसे डिजिटल हेल्थ प्लेटफॉर्म पर भरोसा किया। सरकार ने भी ई-संजीवनी ऐप के जरिए टेलीमेडिसिन को बढ़ावा देने का काम किया।
मार्च के बाद से टेलीमेडिसिन लेने वालों की संख्या में 154% तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इन ऐप्स पर आम बीमारियों जैसे बुखार, जुकाम आदि के बारे में पूछताछ करने वालों की संख्या में 200% तक की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई।
- घर में ही फिट हो रहे लोग, फिटनेस ऐप बने सहारा
वजह: दूसरों के संपर्क में आने से बचने के लिए लोगों ने घरों में ही वर्कआउट और योग शुरू किया। इसमें फिटनेस ऐप्स ने उनकी मदद की।
कोरोना के चलते घर में ही स्वस्थ रहने की कोशिश को कई लोगों ने आदत बना लिया। 'जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं' का पालन करते हुए लोगों ने जिम जाने से परहेज किया। एक सर्वे में 20% लोगों ने अनिश्चित काल के लिए जिम न जाने की बात कही तो 40% ने कहा कि वे नहीं कह सकते कि फिर कब जिम जाएंगे। लॉकडाउन लगते ही फिटनेस उपकरणों की खरीद में 55% की बढ़ोतरी हुई।
ध्यान (मेडिटेशन) के वीडियो देखने वालों मे 35% की बढ़ोतरी हुई। ऐसे सर्वे करने वाली टेक कंपनी सेंसर टावर के मुताबिक कोरोना काल में फिटनेस ऐप डाउनलोडिंग में 47% की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इस दौरान 65.6 करोड़ लोगों ने फिटनेस ऐप डाउनलोड किए। सिर्फ मई में करीब 34 लाख लोगों ने 'स्ट्रावा' ऐप डाउनलोड किया। बीते साल सात करोड़ से ज्यादा लोगों ने फिट रहने के लिए स्मार्टवॉच और फिटनेस बैंड खरीदे। 2019 की तुलना में यह आंकड़ा 33% ज्यादा रहा।
- महामारी फैली तो लोगों का भगवान पर भरोसा बढ़ा
वजह: कोरोना की वजह से कई बातों को लेकर अनिश्चितता बढ़ी। सब सामान्य रहे इसलिए लोगों ने ईश्वर में अपनी आस्था दिखाई और प्रार्थना शुरू की।
कोरोना काल में बढ़ी अनिश्चितता ने लोगों को धार्मिक बनाया। एक स्टडी के अनुसार 21 से 35 साल की उम्र के लोगों में धार्मिकता और आध्यात्मिकता में बढ़ोतरी की है। खासकर युवा महिलाओं (64%) ने कहा कि वे ईश्वर में अपने विश्वास के चलते सुरक्षित रहेंगीं। 'रिलीजन एंड फेथ परसेप्शन इन ए पैंडेमिक ऑफ कोविड-19' नाम की इस स्टडी में पाया गया कि करीब 87% लोगों ने माना कि अपने किसी न किसी विश्वास के चलते, उन्हें सुरक्षा का अहसास होता है।
इसी सर्वे में यह भी पाया गया कि युवाओं में 'आस्था' का महत्व बढ़ा है। युवाओं में प्रार्थना करने वालों की संख्या भी बढ़ी है। इससे इतर 2017 में हुए PEW रिसर्च में पाया गया था कि धार्मिकता में लगातार गिरावट आ रही थी। कोरोना के दौर में दुनिया के बड़े नेताओं ने भी ईश्वर पर विश्वास की बातें कहीं। पोलैंड के उप-प्रधानमंत्री ने कहा, 'चर्च, आत्मा के लिए अस्पताल जैसे हैं।'
- एयर प्यूरीफायर की जगह वायरस प्यूरीफायर ने ली
वजह: यह उपकरणों, सामान और सतह से 100% वायरस को खत्म कर देती हैं।
कोरोना ने लोगों को साफ-सफाई से रहने का बड़ा पाठ पढ़ाया है। यही वजह है कि यूवी स्टेरिलाइजर (सैनिटाइजर) मशीन की डिमांड तेजी से बढ़ी है। इस मशीन से डेली यूज वाली चीजें जैसे सब्जी, फ्रूट्स, दूध का पैकेट, पर्स, पैसे, स्मार्टफोन या गैजेट्स जैसे कई सामान को सैनेटाइज किया जाता है। इसमें अल्ट्रा वॉयलेट लाइट होती है जो बैक्टेरिया और वायरस को खत्म कर देती है। पहले इनका इस्तेमाल हेल्थकेयर सेंटर्स पर किया जाता था, लेकिन अब घरों में भी इनका इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। 2026 तक इन मशीनों का बाजार 24 हजार 668 करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगा।
- ऐप्स और इंटरनेट के जरिए मेल-जोल
वजह: सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए लोग वर्चुअली एक-दूसरे से जुड़ रहे हैं। वीडियो कॉलिंग ऐप से एक-दूसरे की खुशियों में भी शामिल हो रहे हैं।
अब स्मार्टफोन में कुछ ऐसे ऐप्स परमानेंट जगह बना चुके हैं जो 2020 से पहले जरूरी नहीं थे। आरोग्य सेतु ऐप आपका पर्सनल कोविड गार्ड बन चुका है। वहीं, जूम और गूगल मीट ऐप वीडियो कॉलिंग के लिए सबसे जरूरी हैं। पिछले दिनों एक शादी चर्चा में रही, जिसमें वाट्सऐप से इन्वीटेशन भेजे गए। लोग ऐप्स के जरिए शादी में शामिल हुए। वीडियो कॉलिंग जूम में तो 2000% की बढ़ोतरी हुई है। गूगल मैप्स जो ट्रेवलिंग के दौरान जैसे ट्रेन, बस, पब्लिक प्लेस पर कोविड संक्रमितों की लाइव डिटेल देता है।
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