नेता सब कपड़ा जइसा पार्टी बदल रहा है, कार्यकर्ता सब को बुझाइए नहीं रहा है कि किसका झंडा ढोएं, किसका बैनर उठाएं
शहरः पटना
स्थानः लंगर टोली
समयः दोपहर के दो बजे।
आसमान काले बादलों से घिरा है। अचानक बारिश होने लगती है। मैं एक चाय की दुकान में घुस जाता हूं। दुकान छोटी है लेकिन उसके आगे तिरपाल लगा है। उसी के नीचे दो बेंच लगी हैं। वहां चार-पांच लोग और हैं, बारिश से बचने की कोशिश में। बारिश तेज हो चुकी है। उधर सड़क पर बूंदों की टपटप है, इधर बातों में राजनीति की बारिश के साथ टपटप शुरू हो चुकी है। फिर कुछ देर तक शांति रहती है।
अचानक एक अधेड़ बोलता है, 'बरसात का भी कोई ठीक नहीं है, कब शुरू होगा कब खतम होगा, पते नहीं चलता है। एकदम नेता जइसा हो गया है। किस पार्टी में रहेगा, थाहे नहीं लगे देता है। नेता सब अइसे पार्टी बदल रहा है, जइसे कोई कपड़ा बदलता है।'
अधेड़ की बात बीच में ही रोककर एक युवक बोल उठा, 'सही कह रहे हैं, इलेक्शन क घोषणा के पहले तो सब पार्टी बदलिए रहा था, अभियो बदल रहा है। रोजे मिलन समारोह हो रहा है। हमको लगता है, हमहुं कौनो पार्टी ज्वाइने कर लें।'
मैं उन्हें थोड़ा उकसाता हूं, कहां कोई पार्टी बदल रहा है जी! अगर इक्का-दुक्का नेता बदल भी लिया तो उससे क्या होगा। पहले वाला अधेड़ बोलता है. क्या बात कर रहे हैं? आपको पता भी है, केतना नेता राजद से जदयू में गया? केतना जदयू से राजद में! कल्हे न इलियास हुसैन का बेटा जदयू में गया है। कुशवाहा का नेता भूदेव चौधरी राजद में चला गया। ई सब आया राम-गया राम हो गया है! देखिएगा इलेक्शन बाद फिर पार्टी बदल लेगा।
बेंच पर गहरे पावर का चश्मा लगाए एक बुजुर्ग अखबार पढ़ रहे थे। लगता है सबकी बात भी सुन रहे थे। अचानक बोल पड़ते हैं, आप ही लोग सबका मन बढ़ा के रखे हैं। दल बदलने वाले नेता का कोई सिद्धांत होता है क्या? नेता जानता है कि जात के नाम पर तो सब वोट देवे करेगा, चाहे कोई पार्टी में रहें। वहां खड़े-खड़े चाय पी रहा एक अन्य युवक बोल उठता है, ऐसा मत कहिए चचा, हमलोग भी तौले के नेता को वोट देते हैं। लेकिन ई नेतवे सब जीते के बाद दगा दे देता है। जिस पार्टी में फायदा नजर आता है, उसी में घुस जाता है। पब्लिक तो हैरान रहबे करता है, पार्टी का कार्यकर्ता सब भी पसोपेश में रहता है कि किस नेता का झंडा ढोएं, किसका बैनर उठाएं।
सबकी बात सुन रहा और तसले में कलछी घुमाता चाय वाला अब तक खामोश है। शायद उसे भीड़ और इस राजनीतिक बतकही में अपनी दुकानदारी की चिंता खाए जा रही है। कल ही बोल रहा था, अब ई चुनाव बेला में चाय कम बिकेगी, बातें जियादे।
लेकिन आज की बहसनुमा बरसात में उसकी बोली भी शामिल हो चुकी है... बोल पड़ता है, ‘अब पार्टी कहां रह गया है भइया, अब तो गठबंधन और महागठबंधन हो गया है। यादे नहीं रहता है कि कौन पार्टी किस गठबंधन में है, कौन नेता किधर है। ई सब डगरा के बइगन हो गए हैं। देख नहीं रहे कि चिराग कइसे छान-पगहा तोड़ाए पे उतारू है। कुशवाहा जी क कौनो थाहे न बुझात आ।
चाय वाला अभी और कुछ बोलता कि इससे पहले बारिश रुक चुकी है। लोग निकलने लगे हैं। ये चाय चर्चा तो यहीं खत्म हो गई है। बुजुर्ग अभी भी अखबार पर नजरें गड़ाए हैं। चाय वाले की कलछी फिर अपना काम करने लगी है।
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