फैशन इंडस्ट्री की नौकरी छोड़कर गाय का देसी घी और कुकीज का बिजनेस शुरू किया, पहले ही साल 24 लाख रु का टर्नओवर हुआ, 15 महिलाओं को रोजगार भी दिया
शिप्रा शांडिल्य...90 के दशक में फैशन इंडस्ट्री में ये एक चमकता नाम था, लेकिन 19 साल तक फैशन इंडस्ट्री में काम करने के बाद अचानक एक दिन उस चमचमाती दुनिया को छोड़कर गांव का रुख किया। पिछले सात सालों से वे ग्रामीण इलाकों में ही रहकर यहां के लोगों के साथ ही काम कर रही हैं। शिप्रा ने बनारस और आसपास के गांव की महिलाओं को जोड़कर एक फर्म बनाई, जिसका नाम रखा प्रभूति एंटरप्राइजेज। अब वे इसके जरिए करीब 12 तरह के अलग-अलग फूड प्रोडक्ट्स तैयार करती हैं। शुरुआत गाय के शुद्ध देसी घी से की थी और फिर रागी, बाजरा जैसे मोटे अनाजों के नॉन प्रिजर्वेटिव कुकीज भी बनाने लगीं।
अपनी बेकरी में गांव की 15 महिलाओं को रोजगार देकर शिप्रा उन्हें आत्मनिर्भर बना रही हैं, साथ ही 450 से अधिक छोटे किसानों से भी सीधे संपर्क में हैं, जो उन्हें हर महीने 30 हजार लीटर गाय का दूध उपलब्ध कराते हैं। जल्द ही आसपास के जिलों के 700 किसानों को भी जोड़ने की प्लानिंग है।
शिप्रा बताती हैं कि ‘इसमें करीब 10 लाख रुपए का इंवेस्टमेंट हुआ, जिसमें 8 लाख रुपए मुद्रा योजना के तहत लोन लिया। पिछले फाइनेंशियल ईयर में 24 लाख रुपए का टर्नओवर रहा, जिसे अगले साल में चार गुना करने का प्लान है।’
आध्यात्म की ओर रुझान हुआ तो अहसास हुआ कि फैशन इंडस्ट्री में बहुत गंदगी है
अपने शुरुआती दिनों के बारे में शिप्रा बताती हैं ‘मेरे पिताजी बीएसएफ में थे, उस समय हम नोएडा में रहते थे। मैंने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई के बाद डिस्टेंस से पढ़ाई की। मैंने हमेशा किताबों में पढ़ा और सक्सेसफुल लोगों से सुना था कि अगर पैशन को ही प्रोफेशन बनाना बेहतर रहता है। तो मैंने 12वीं के बाद पत्राचार से फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा कोर्स किया। कोर्स के बाद मेरे पास जॉब ऑफर भी था लेकिन मुझे अपना काम करना था तो गैराज में ही अपना एक छोटा सा स्टोर बनाकर शुरुआत की।
शिप्रा ने साल 1992 में फैशन डिजाइनिंग के फील्ड में काम शुरू किया। कुछ ही सालों में वो एक सफल फैशन डिज़ाइनर बन गई। कम समय में ही शिप्रा को नाम, पैसा और शोहरत तीनों मिल गया। डिजाइनिंग के बाद शिप्रा ने कई सालों तक डाई के सेक्टर में भी काम किया। इसके लिए वह अलग-अलग शहरों में रहीं और वहां काम सीखा भी और सिखाया भी।
इस बीच शिप्रा का रुझान आध्यात्म की ओर भी हुआ और उन्हें अहसास होने लगा कि फैशन इंडस्ट्री दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषित इंडस्ट्री में से एक है। साथ ही यहां बड़े पैमाने पर कारीगरों को शोषण होता है, उन्हें उनके काम का सही दाम तक नहीं मिलता है। फिर एक वक्त आया जब शिप्रा को लगा कि अब उन्हें कुछ और करने की ज़रूरत है। 19 साल बाद साल 2011 में वो नाेएडा का अपना जमा जमाया बिजनेस छोड़कर बनारस आ गईं। शिप्रा बताती हैं, जब मैं गांव आई तो सब मुझे पागल ही समझते थे।
बनारस आकर तय किया ऐसा बिजनेस करूंगी जिससे लोगों को खुशी मिले
शिप्रा बताती हैं कि ‘जब मैं बनारस आई तो सोचा कि यहां कोई ऐसा काम करूंगी जिसमें पर्यावरण का नुकसान न हो और ना ही किसी का शोषण हो। मैं नहीं चाहती थी कि बिजनेस से आने वाले पैसे लाेगों के मानसिक और पर्यावरणीय प्रदूषण से नहीं बल्कि उनकी खुशियों से आएं।
साल 2013 में यहां महिलाओं के हुनर को देखा कि वे कैसे जपमाला और कई तरह-तरह की माला तैयार करती हैं। शिप्रा ने सोचा कि जिस माला से लोग भगवान का ध्यान करते हैं वो माला सड़क किनारे मिलती है। इसके बाद उन्होंने ‘माला इंडिया’ के नाम से एक बिजनेस शुरू किया। इस बिजनेस में शिप्रा ने करीब 100 महिलाओं को जोड़ा। इन प्रोडक्ट्स को भारत समेत विदेशों तक भी पहुंचाया। लेकिन कस्टम के नियमों में बदलाव के बाद एक्सपोर्ट का खर्च बढ़ गया तो शिप्रा ने महसूस किया कि इस बिजनेस में ज्यादा फायदा नहीं हो सकेगा।
गाय का देसी घी बनाना शुरू किया तो डिमांड इतनी आई कि सप्लाई कम पड़ने लगी
शिप्रा ने तय किया कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे गांव में रहने वाले हर एक परिवार को जोड़ा जा सके और वो लोग बिना लागत के ही काम शुरू कर सकें। इसी सोच के साथ साल 2019 में शिप्रा ने प्रभूति एंटरप्राइजेज की शुरुआत की। शिप्रा कहती हैं कि ‘ मैंने सोचा कि ऐसी क्या चीज़ है जो हर ग्रामीण घर में होती है? पता चला कि ज्यादातर किसान परिवार गाय-भैंस तो रखते ही हैं। तो मैंने घर पर बने शुद्ध घी को मार्केट तक पहुंचाने का निर्णय लिया।
इसके लिए शिप्रा ने 55 हजार की लागत से दूध से क्रीम निकालने वाली एक मशीन खरीदी, जहां किसान दूध से क्रीम निकाल लेते और फिर इस क्रीम से पारम्परिक तरीके से शुद्ध देसी घी तैयार करना शुरु किया। इसमें बीएचयू के केमिकल इंजीनियर डिपार्टमेंट ने भी सपोर्ट किया। शुरुआत में जान-पहचान के लोगों से इस घी का फीडबैक लिया फिर इसे काशी घृत नाम देकर बाजार में उतारा। बाजार में ऑर्गेनिक शॉप्स पर इस घी को अच्छा रिस्पांस मिला।
शिप्रा हर महीने करीब 100 किलो देसी घी तैयार करती हैं लेकिन इसकी डिमांड बहुत ज्यादा है। अब वे आस-पास के जिलों के किसानों को भी जोड़ रही हैं ताकि उन्हें ज्यादा मात्रा में गाय का दूध मिल सके, जिससे वे घी तैयार कर मार्केट में सप्लाई कर सकें। 30 लीटर दूध की क्रीम से एक किलो घी तैयार होता है। फ़िलहाल शिप्रा, तीन तरह के घी (सामान्य देसी घी, ब्राह्मी घी, शतावरी घी) बना रही हैं। इस घी की कीमत 1450 रुपए से लेकर 2460 रुपए प्रति किलो तक है।
किसानों को उनकी उपज से ही काम देकर तैयार कराती हैं मल्टीग्रेन कुकीज
बनारस से सटे गांवों के किसान रागी, ज्वार भी उगाते हैं। शिप्रा ने सोचा कि क्यों न इन किसानों को उनकी अपनी उपज से ही कुछ काम दिया जाए। इस तरह घी के बाद इन अनाजों के कुकीज बनाने का आइडिया आया। घी के अलावा वो नारियल, ओट्स, रागी, हल्दी आदि के कुकीज भी बना रही हैं। इन कुकीज में किसी भी तरह के एडिटिव, प्रिजर्वेटिव और ग्लूटन का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
इसमें 6 तरह के कुकीज वीगन डाइट वालों के लिए भी बनाए गए हैं। हर महीने करीब 50 किलाे कुकीज तैयार की जाती है, इन कुकीज की कीमत 1300 रुपए से लेकर 1500 रुपए प्रति किलो तक है। घी और कुकीज की पैकिंग के लिए कांच के एयरटाइट जार का इस्तेमाल किया जाता है।
मार्केट डिमांड देखकर ही बिजनेस प्लान पर काम करें
शिप्रा कहती हैं कि कोई भी बिजनेस शुरू करने से पहले यही देखा जाए कि मार्केट में किस चीज की डिमांड है, उसी हिसाब से अपने बिजनेस प्लान पर काम करें। शिप्रा की योजना है कि उनके प्रोडक्ट्स पूरे देश में पहुंचे और वे ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को रोज़गार दे सकें।
शिप्रा कहती हैं, जरूरी नहीं है कि आपके पास पैसे हों तभी आप बिजनेस शुरू कर सकते हैं। सरकार की तमाम योजनाएं हैं, बस इसे सही तरीके से समझकर इसके लिए आवेदन करने की जरूरत है।शिप्रा कहती हैं कि ‘अगर कोई भी व्यक्ति अपने बिजनेस की शुरुआत करना चाहता है हम उसकी हर तरह से नि:शुल्क मदद करते हैं।’
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